क्या हमे हर समय कुछ नया चाहिए ?

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क्या हमे हर समय कुछ नया चाहिए ?

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         कहते है युग तेजी से बदल रहा है।  युग बदलने के साथ बदल रही है इंसान की सोच —– काम करने के प्रति —-समाज के प्रति —-हालातो का सामना करने के प्रति —–रिश्तो  के प्रति—–  | एक सर्वेक्षण के अनुसार जो  सोच पहले 30 वर्ष के इंसान की होती थी वो आज 6 वर्ष के बच्चे की होती है।  इतनी तेजी से बदल रही है इंसान की सोच।  जैसे जैसे सोच बदल रही है —वैसे वैसे बदल रहा है इंसान का व्यवहार।  इंसान से इस तकनीकी युग के विकास में अपने आप को सुख सुविधाओं के अम्बार में इस तरह घेर लिया है मानो उसका मन चंचल सा हो गया है।  कहीं किसी एक चीज़ पर टिकता ही नहीं है।  हर पल हर समय कुछ न कुछ नया चाहिए होता है।चाहे वो किसी भी रूप में हो —स्वादिष्ट व्यंजन — हर बार कुछ न कुछ नया  चाहिए। कई बार तो घर के खाने से ही  मन ऊब जाता है। …फिर रुख करते है हम होटलो में खाने की तरफ ।  नौकरी —– एक कंपनी में  2  वर्ष —ये भी बहुत ज्यादा है—- काम कर लिए तो मानो बहुत बड़ी बात है।  यह तो फिर ठीक है। .ऐसा युग आ गया है कि इंसान का इंसान से मन ऊब जाता है। यह तो फिर भी बहुत बड़ी बड़ी बातें है  एक  टेलीविज़न का चैनल —–एक समय में रिमोट की सहायता से तीन तीन टी वी सीरियल एक साथ देखे जाते है।

            आज के 10 में से 9 बच्चो में एकाग्रचित की कमी पायी जाती है।  एक समय में बहुत सारे कामो की तरफ चल रहा होता है दिमाग , क्यों —-??  कारण पूछने पर —-बैठा नहीं जाता।  शायद वो भी अपनी जगह पर सही है , उन्होंने अपने बड़ो को ही इस तरह के स्वभाव में देखा है —-हर समय कुछ नया पाने की चाह केवल हम ही नहीं अपितु हमारी आज की पीड़ी में भी आ रही है। एक जरुरत पूरी होते ही दूसरी , फिर तीसरी—-कोई अंत नहीं। क्या यह हमारे लिए सही है ??? चलिए,ज़रा अपने व्यस्त जीवन में से थोड़ा सा समय निकाल कर सोचते है।  जी नहीं ! यह बिलकुल भी सही नहीं है।  क्योकि हम रेस में जितना मर्ज़ी भाग ले , कहीं न कहीं आकर रुकना ही पड़ता है, लकिन हम ज़िन्दगी की रेस में  केवल पैसा कमाने के लिए , उन्नति करने के लिए , अपने परिवार का अच्छे से पालन पोषण करने के लिए इस कदर भाग रहे है —- कि मानो ज़िन्दगी थमने का नाम ही नहीं लेती है। लकिन हमे  कहीं न कहीं तो रुकना होगा , अपने आने वाली पीड़ी के भविष्य के लिए —कहीं ऐसा न हो कि हर पल कुछ नया पाने की चाह उसे इंसानियत ही भुला दे —-रिश्तो की कदर जहाँ आज कम हो रही है , वही वह किसी समय में आकर समाप्त हो जाए।  तो आइए ! थोड़ा सा रुके और सोचे कि हम अपने आने वाले वंश के लिए उचित है। 

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