Hindi Poem – Maa ka ghar

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Hindi Poem – Maa ka ghar

जैसा कि हम जानते हैं लड़कियों के लिए माता-पिता का घर अति प्रयोग होता है|  शादी के बाद चाहे एक लड़की ससुराल चले जाती है ,लेकिन मां का घर उसके घर की यादें सदा उसके मन में रहती हैं, तो आज एक कविता उसी मां के घर के लिए…… क्या खूब लिखा है किसी ने……..

बरसों बीत गए
उस घर से विदा हुए,
नई दुनिया बसाए हुए ,
पर ना जाने क्या बात है ?
शाम ढलते ही मन,
उस घर पहुंच जाता है|
मां की आवाज सुनने को,
मन आज भी तरसता है,
महक माँ के खाने की,
आज भी दिल भरमाती है,
शाम होते ही याद आता है,
घर में हंसी व शोर का होना
पापा के काम से, लौटकर आते ही,
चाय का प्याला पीना,
दिन भर का हाल सुनाना,
भाई का खेलते कूदते आना,
शाम होते, याद आता है घर,
जहां सदा मेहमानों का था,
लगातार आना जाना |
बहुत मुश्किल से,
मन को समझाते हूँ ,
वो दिन बीत गए, अब तुम सपनों में,
जी लिया करो,
उन पलों को, जो लौट के कभी,
न फिर आएंगे|
आज भी, मां से किए ,
वादों को निभाती हूं,
सबको खुश रखने की
अथक कोशिश में,
अपने आंसुओं की पी जाती हूं,
कोई कह दे मेरे रब से,
या तो शाम न ढला करें,
या मां के घर की,
असहनीय याद ना आया करें|
बहुत खुश है हम,
अपने इस दुनिया में,
बिन मांगे सब पाया है,
लेकिन दिल से यादें,
कौन निकाल पाया है ?
मां के घर की यादें
कौन भुला पाया है ?
मां के घर की यादें,
कौन भुला पाया है?

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