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इस पेज पर आपको आरती संग्रह in Hindiमिलेगा , जिसे सुबह शाम पड़ने से जीवन का कल्याण हो जाता है |
सर्वप्रथम हम माँ जगदम्बे की आरती पड़ेगे –
माँ जगदम्बे की आरती
तेरे ही गुण गाये भारती
ओ मैया हम सब
उतारे तेरी आरती ।१।
भीड़ पड़ी है भारी –2
दानव दल पर टूट पड़ो
माँ करके सिंह सवारी –2
ओ मैया हम सब
उतारे तेरी आरती
ओ अम्बे तू है जगदम्बे काली—-|२ |
पूत-कपूत सुने है
पर ना माता सुनी कुमाता –2
सब पे करूणा दर्शाने वाली
नैया भंवर से उबारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ अम्बे तू है जगदम्बे काली—|३ |
हम तो मांगें माँ तेरे चरणों में
छोटा सा कोना —-2
सबकी बिगड़ी बनाने वाली
लाज बचाने वाली
सतियों के सत को सवांरती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ अम्बे तू है जगदम्बे काली—–|४ |
।।बोल साचे दरबार की जय।।
गणपति जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
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बोल गणपति महाराज की जय
शिव जी की आरती
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
बोल शंकर भगवान् की जय
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अनजानी पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
पैठी पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमान जी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की|
बोलो राम भक्त हनुमान की जय
संतोषी माँ की आरती
जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता ।।
जय सन्तोषी माता….
सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके तन श्रृंगार लीन्हो ।।
जय सन्तोषी माता….
गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे।
मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन जन मोहे ।।
जय सन्तोषी माता….
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे।
धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे।।
जय सन्तोषी माता….
गुड़ अरु चना परम प्रिय ता में संतोष कियो।
संतोषी कहलाई भक्तन वैभव दियो।।
जय सन्तोषी माता….
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।
भक्त मंडली छाई कथा सुनत मोही।।
जय सन्तोषी माता….
मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।
बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई।।
जय सन्तोषी माता….
भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै।।
जय सन्तोषी माता….
दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्त किए।
बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिए।।
जय सन्तोषी माता….
ध्यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो।।
जय सन्तोषी माता….
चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे।।
जय सन्तोषी माता….
सन्तोषी माता की आरती जो कोई जन गावे।
रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे।।
जय सन्तोषी माता….
बोलो संतोषी माँ की जय
लक्ष्मी माँ की आरती
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत , हरी विष्णु विधाता ,
ओम जय लक्ष्मी माता|
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता ,
ओम जय लक्ष्मी माता||
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत , रिधि सिद्धि गाता ,
ओम जय लक्ष्मी माता||
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिन , भवनिधि की त्राता ,
ओम जय लक्ष्मी माता||
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता . मन नहीं घबराता ,
ओम जय लक्ष्मी माता||
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता .
ओम जय लक्ष्मी माता||
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ,
ओम जय लक्ष्मी माता||
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ,
ओम जय लक्ष्मी माता||
बोलो लक्ष्मी माता की जय , लक्ष्मी नारायण देव की जय |
आरती श्री कृष्णा जी की
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की |
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की |
बोलो कुञ्ज बिहारी लाल की जय
आरती ॐ जय जगदीश हरे
स्वामी जय जगदीश हरे
क्षण में दूर करे
ॐ जय जगदीश हरे|
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त ज़नो के संकट, दास ज़नो के संकट
क्षण में दूर करे
ॐ जय जगदीश हरे|
स्वामी दुख बिन से मन का
सुख सम्पति घर आवे
सुख सम्पति घर आवे
कष्ट मिटे तन का
ॐ जय जगदीश हरे|
शरण गहूं किसकी
स्वामी शरण गहूं किसकी
तुम बिन और ना दूजा
तुम बिन और ना दूजा
आस करूँ जिसकी
ॐ जय जगदीश हरे|
तुम अंतरियामी
स्वामी तुम अंतरियामी
पार ब्रह्म परमेश्वर
पार ब्रह्म परमेश्वर
तुम सबके स्वामी
ॐ जय जगदीश हरे|
तुम पालन करता
स्वामी तुम पालन करता
मैं मूरख खलकामी
मैं सेवक तुम स्वामी
कृपा करो भर्ता
ॐ जय जगदीश हरे|
सबके प्राण पति
स्वामी सबके प्राण पति
किस विध मिलु दयामय
किस विध मिलु दयामय
तुम को मैं कुमति
ॐ जय जगदीश हरे|
ठाकुर तुम मेरे
स्वामी रक्षक तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ
अपनी शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे
ॐ जय जगदीश हरे|
स्वामी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ
सन्तन की सेवा
ॐ जय जगदीश हरे|
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त ज़नो के संकट
दास ज़नो के संकट
क्षण में दूर करे
ॐ जय जगदीश हरे|
