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Navratri 2020 : Nine Forms of Maa Durga
नवरात्रि का अर्थ एवम मान्यता

नवरात्रि हिन्दू पर्व का एक प्रमुख त्यौहार है , जिसे पुरे भारत में पूर्ण जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि अर्थात नौ राते —-जिन नौ रातो में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। मान्यता है कि श्री राम ने रावण के वध से नौ दिन पहले पूरी विधि विधान के साथ माँ दुर्गा की पूजा की थी , जिसके परिणाम स्वरूप अधर्म पर धर्म की विजयी हुई।
दूसरी मान्यता यह है कि एक महिषासुर नामक दानव ने नरक को स्वर्ग की ओर ले गया। देवताओं को पराजित करके स्वर्ग को अपना बनाने की कोशिश की। सभी देवताओं ने मिल कर दुर्गा माँ की रचना की और अपने सभी अस्त्र -शास्त्र दुर्गा माँ को दिए। महिषासुर और दुर्गा माँ में महासंग्राम नौ दिनों तक चला। आखिरकार माँ दुर्गा ने महिषासुर का संघार किया और महिषासुरमर्दिनी कहलाईं |
दुर्गा माँ के विभिन्न रूप
नवरात्रि के नौ दिनों में दुर्गा माँ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दिनों में माता के विभिन्न शक्ति पीठ एवं सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते है। जिसमे शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यानी , कालरात्रि , महागौरी ,सिद्धिदात्री शामिल है। श्रद्धालु पूर्ण श्रद्धा के साथ नवरात्रि में उपवास रखते है और दुर्गा माँ की पूजा -अर्चना करते है। कई श्रद्धालु नवरात्रि में अखंड जोत जगाते है और खेत्री भी बीजते है और नवमी के दिन कन्याओ के रूप में माता को पूजा जाता है |
माँ शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की जाती है। नवदुर्गाओं में प्रथम रूप माता शैलपुत्री का आता है। पुराणों में यह माना जाता है कि जब माता सती शिव शंकर से हठ करके अपने पिता दक्ष के घर यज्ञ अवसर पर चली गयी , तो वहां अपने पति का अपमान न सहन कर अपने आप की आहुति उसी यज्ञ में दे दी। इस पश्चात अगले जन्म में सती शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री कहलायी।
माँ ब्रह्मचारणी
नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता की पूजा की जाती है। ब्रह्म अर्थात तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। पूर्व जन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।
माँ चंद्रघंटा
नवरात्री के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। सिंह पर सवार यह माता वीरता का प्रतीक है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव – दैत्य और राक्षस कापते है।
माँ कूष्माण्डा
नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की जाती है। कहते है जब सृष्टि में चारो और अँधेरा ही अँधेरा था तब कूष्माण्डा माता ने इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए इन्हे आदिशक्ति कहा जाता है।
माँ स्कन्धमाता
नवरात्रि का पांचवा दिन स्कन्धमाता जी का होता है। यह माता पहाड़ो में रहकर सांसारिक जीवो में नवचेतना का निर्माण करती है। इस माता की उपासना से मोक्ष का द्वार सुलभ हो जाता है। इस देवी शक्ति से विद्वानों का निर्माण होता है। माना जाता है कि प्रसिद्ध लेखक कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम माहाकाव्य एवं मेघदूत रचनाये स्कन्धमाता की कृपा से संभव हुई है।
माँ कात्यानी
नवदुर्गा के छटे रूप में माँ कात्यानी के रूप की उपासना की जाती है। इनकी उपासना से अर्थ , धर्म , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहते है कात्य गौत्र के महर्षि कात्यान ने कठिन तपस्या की थी कि उनके घर माँ पुत्री के रूप में जन्म ले। इसीलिए माता का नाम कात्यानी हो गया। यह भी माना जाता है कि गोपियों ने श्री कृष्णा पाने के लिए इसी माता की अर्चना की थी।
माँ कालरात्रि
नवदुर्गा का सातवा रूप माँ कालरात्रि का आता है। माना जाता है कि काली माता की उपासना से सारी बाधाएं दूर हो जाती है और प्राणी संसार के सारे भय से मुक्त हो जाता है। इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है।
माँ महागौरी
नवरात्रि के आठवे दिन माँ महा गौरी की पूजा का विधान है। माना जाता है कि जो भी स्त्री सच्चे मन से माता की पूजा करती है , माँ उसके सुहाग की रक्षा करती है। कहते है माँ गौरी ने शिव शंकर को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या करने पर उनका शरीर काला पड़ गया था। शिव शंकर की कृपा से उनका शरीर गौर वर्ण हो गया था। इसीलिए यह माता महागौरी कहलायी।
माँ सिद्धिधात्री
नवदुर्गा का नौवा रूप सिद्धिधात्री का है। इन माता की उपासना से सारी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इन माता की साधना से लौकिक एवं परलौकिक सभी कामनाओं की पूर्ती होती है। कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से हो जाते है।
